Postgraduate Diploma in Development
Leadership 2021-22
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Postgraduate Diploma in Development
Leadership 2021-22
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जुड़ने के लिए लिंक - https://www.youtube.com/watch?v=GhQpLXSSU4M
लेख यहाँ पढ़ें : https://bit.ly/3grpaq2
दोष
ग्लेशियर का कतई नहीं, सिर्फ हमारा है
वीरेन्द्र
कुमार पैन्यूली, सामाजिक कार्यकर्ता ….. ग्लेशियरों ने अपनी राह चुनी, आप अपनी राह चुनिए। ग्लेशियरों की राह
में आप थे या आपकी राह में ग्लेशियर? हमारे हाल के लिए यदि
ग्लेशियर जिम्मेदार हैं, तो ग्लेशियर के हाल के लिए
कौन जिम्मेदार है? ग्लेशियर आपदा नहीं पानी देते हैं।….. ऋषि गंगा के ऊपरी क्षेत्र के ग्लेशियर ने पिछले तीन दशकों में अपना 10
प्रतिशत भार खो दिया है।….. विश्व के ये जल
भंडार यदि पिघल जाएं, तो सागर के स्तर में लगभग 230
फीट की वृद्धि हो जाएगी….. ग्लोबल वार्मिंग
के सबसे अच्छे संकेतक ग्लेशियर को माना जाता है।….. सड़क
निर्माण का मलबा यदि नदियों या पुलों के पास डाला जा रहा हो, तो इन इलाकों में भविष्य के फ्लैश फ्लड से नहीं बचा जा सकता….. दुनिया का कोई भी क्षेत्र हो, ग्लेशियर के पास
रहना खतरनाक होता है।….. गंगा व यमुना को 20 मार्च 2017 से नैनीताल उच्च न्यायालय के एक आदेश
के अनुसार, न्यायिक जीवित मानव का दर्जा दिया गया था। इससे
ये नदियां अपने मानवाधिकार हनन के लिए न्यायालय जा सकती थीं। देश में ऐसा पहली
बार हुआ था, किंतु सरकारों ने उच्चतम न्यायालय में इस आदेश
की व्यावहारिकता को चुनौती दे दी।….. |
This issue highlights ideas of
justice, equality, liberty and fraternity – four very lofty ideals
which have the power of creating a dynamic society, perhaps changing
with the times, but always for the better. It is clear that an
all-encompassing concept like citizenship cannot be taught at the
macro-level: it has to begin with the family, the smallest yet most
significant unit of society, spread concentrically to friends, strangers
and finally to the country. This is why the school, especially in
the primary years, is considered to be the best place to impress upon our
children, who are already citizens at birth, what their attitudes could be if
they want to ‘be the change they want to see’. Click below link to access the online version https://azimpremjiuniversity.edu.in/SitePages/resources-learning-curve-issue-9-april-2021.aspx |
Frontline workers in India like ASHA, ANMs, Mitanin, and others have been at the forefront of the battle against the COVID-19 pandemic. Yet much of their struggle and sacrifice in the wake of the crisis has largely been ignored.
Arima
Mishra and Sanjana Santosh have crafted a compendium “Aren’t we frontline
warriors? Experiences of grassroots health workers during COVID 19” that
encapsulates real-life stories of challenges, resilience and resolution faced
by the frontline workers from different parts of India.
The
compendium has been published by Azim Premji University.
Read
the compendium by clicking bit.do/awflw
“ क्या हम फ्रंटलाइन वारियर्स नहीं है? ” कोविड 19 के दौरान ग्रासरूट हेल्थ वर्कर्स के अनुभव ”
भारत में , कोविड -19 महामारी के खिलाफ संघर्ष में फ्रंटलाइन कार्यकर्ता जैसे - आशा, ए.एन.एम. , मितानिन (छत्तीसगढ़ में आशा कार्यकत्री) और अन्य सबसे आगे रहे हैं । संकट की घड़ी में उनके संघर्ष और बलिदान अभी तक उपेक्षित रहे हैं. आरिमा मिश्र और संजना संतोष ने देश के विभिन्न भागों में कार्यरत फ्रंटलाइन वर्कर्स की वास्तविक जीवन की चुनौतियों और संकल्प के अनुभवों “क्या हम फ्रंटलाइन वारियर्स नहीं है? ” कोविड 19 के दौरान ग्रासरूट हेल्थ वर्कर्स के अनुभव” का संकलन किया है .
यह संकलन अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा प्रकशित किया गया है .
कोविड : एक और पत्र गाँव से अनुराग बेहार , सीईओ अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन व् वाईस चांसलर अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी http://epaper.subahsaver...