…..विभिन्न आपदाओं के बीच बादल फटने की घटना उत्तराखंड में मुख्य आपदा बनती जा रही है। राज्य में 1970 के मुकाबले बादल फटने, अतिवृष्टि, जल-प्रलय जैसी जलवायु अतिरेक की घटनाएं चार गुना बढ़ चुकी हैं। सामान्यत: जून के उत्तराद्र्ध में मानसून आने के बाद ऐसी घटनाएं घटती हैं, लेकिन इस साल तो मई की शुरुआत से ही इसकी झड़ी लग गई है। बादल फटने से 100 मिमी या करीब चार ईंच बरसात एक ही घंटे में हो जाती है। इससे हजारों टन भार का पानी जमीन पर गिरता है…..यह जरूरी नहीं है कि नमी ढोती हवाओं के, चाहे वे मानसून की हों, पहाड़ों से टकराने से ही बादल विस्फोट हो। पहाड़ों की टोपोग्राफी, यानी चढ़ान-ढलान वाली भू-आकृतियां स्थानीय स्तर पर घाटियों-शिखरों के वायु-प्रवाह पर असर डालती हैं। पहाड़ों के वायु-प्रवाह की विशिष्टताएं वायु ताप संवहन (कन्वेक्शन) को भी बढ़ाती हैं। नीचे की घाटियों से ऊपर उठती वाष्प-नमी लदी हवाओं का जब एकाएक ऊचाई में ठंडी हवाओं से मिलन होता है, तो सघन बादलों के निर्माण और बादल फटने की परिस्थितियां बन जाती हैं। नमी या वाष्पन का संघनन (कॉन्डनसेशन) होने लगता है। छोटी-छोटी बूंदें मिलकर भारी होती जाती हैं। फिर पानी भरे गुब्बारे के फूटने जैसी स्थिति बन सकती है। बादल विस्फोट में बवंडरों की भूमिका भी हो सकती है। तूफान-बवंडर की ऊर्जायुक्त गरम हवा जब बादलों को ऊपर धकेलती है, तब उनमें मौजूद जल-कण आपस में मिलकर इकट्ठा होते रहते हैं। वायु धारा के शिथिल पड़ते ही बादल जल भार से अस्थिर हो जाते हैं, और वे फट पड़ते हैं।…..बादल विस्फोटों से नुकसान न्यूनतम हो, इसके लिए मलबा, गाद को निर्माण स्थलों पर यूं ही छोड़ देने या उनको आसपास के नदी-नालों में धकेल देने के बजाय सुरक्षित स्थानों पर जमा किया जाना चाहिए। घाटियों में बड़ी जलराशि को बांधने या जमा करने से भी बचना होगा। जलागम क्षेत्रों में निर्माण में विस्फोटों से बचना चाहिए। वृक्ष-विहिन जलागम बादल विस्फोटों की आपदा को कई गुना बढ़ा देते हैं, इसलिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की भी जरूरत है…..https://www.livehindustan.com/blog/nazariya/story-hindustan-nazariya-column-19-may-2021-4040816.html
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lnformative and a lesson for policy makers.
ReplyDeleteइस जानकारी को जन जन तक पहुंचाने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteExcellent article but will the leaders and their advisors will wake up
ReplyDeleteExcellent article. We must wake up. But will political leaders and their bureaucracy take action
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